"दिव्य प्रकाश दुबे", एक ऐसा नाम है जो नए प्रभावशाली युवा हिन्दी लेखकों
में अपना नाम शुमार करवा चुके हैं। इनकी दो किताबें, "मसाला चाय" और "Terms
& Conditions Apply" अब तक छप चुकी है और हिन्द युग्म ने इन पुस्तकों
को प्रकाशित किया है। आज दोनों किताबों के बारे में साथ ही बात करेंगे।
मैं किसी भी किताब के बारे में एक ऐसी सोच पेश करने की कोशिश करता हूँ जो कि एक सामान्य पाठक सोचता हो। यह नहीं कह सकता कि कितना सफल होता हूँ पर सोच की दिशा उसी तरफ रहती है। मैं, ना ही कोई समीक्षक हूँ और ना ही बड़ा लेखक, इसलिए इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी विचार मेरे निजी हैं और इन्हें अन्यथा किसी तरह न लें :)
"मसाला चाय" और "Terms & Conditions Apply" दोनों करीब करीब एक सी किताबें हैं जिसमें हिंगलिश का पुरज़ोर प्रयोग हुआ है। हिन्दी लेखन में वैसे तो मैं 'हिंगलिश' का हिमायती नहीं हूँ क्योंकि मैं इसे भाषा में भ्रष्टाचार मानता हूँ पर लेखक ने शायद इस ख्याल से यह किताबें लिखी हैं कि आज कि जो युवा बोलचाल भाषा है, जो कि ना ही शुद्ध हिन्दी है और ना ही शुद्ध अंग्रेजी है, को लेखन में इस्तेमाल किया जाए जिससे युवा पाठक अपने आप को इन किताबों के साथ जोड़कर देख सके। शायद यह प्रयोग सफल भी रहा है और, और भी कई किताबें इन्हीं पदचिन्हों पर चलते हुए आज पाठक-बाज़ार में प्रवेश कर चुकी हैं। तो पाठक अभिविन्यस्त (oriented) दृष्टि से देखें तो यह एक बढ़िया प्रयोग है पर भाषा की शुद्धता और उच्चता पर विचार करें तो उसमें संशय हो आता है।
दोनों ही किताबों ने कई छोटी-बड़ी कहानियों का एक पुलिंदा पेश किया है और सभी बेहद रोचक और आपको अपने अन्दर समेटने वाली हैं। क्योंकि यह युवाओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी कहानियाँ हैं, इसलिए ये इस तबके को तुरंत पसंद आएगी। इन कहानियों के पात्र हमारे ही इर्द गिर्द छोटे-बड़े शहरों में बसते हैं। शायद कोई कहानी आपकी अपनी भी हो, शायद आपके किसी दोस्त कि या फिर अखबार में पढ़े किसी खबर की, पर हैं ये हमारी ही। कई कहानियाँ जो छोटे शहरों की हैं आपको आपके अतीत में ले जाएँगी और वो अल्हड़ दिन याद दिला देंगी। छोटे शहरों में चुप्पी में जीती ये कहानियों को आवाज़ दी है इन किताबों ने तो बड़े शहर के युवाओं की आम ज़िन्दगी को भी बहुत ही सरल शब्दों और विचारों में पेश किया है दिव्य प्रकाश दुबे जी ने।
इस बात पर भी ज़ोर देना चाहूँगा कि ये दोनों किताबें ऐसी हैं जिनको चाहे आप बार बार पढ़ें पर हमेशा नई सी लगेगी वैसे ही जैसे जब भी आप अपने ख़ास दोस्तों से मिलते हैं तो नए नए से लगते हैं। ये कथाएँ आपकी दोस्त हैं क्योंकि ये आप ही के बीच की हैं, आपकी हैं।
संपूर्णतः कहूँ, तो मुझे ये दोनों किताबें बेहद आकर्षक लगी क्योंकि हल्का-फुल्का पढ़ने का भी अपना ही मज़ा है वरना प्रेमचंद, निराला, इत्यादि तो हम बचपन से ही पढ़ते आये हैं :)
मैं किसी भी किताब के बारे में एक ऐसी सोच पेश करने की कोशिश करता हूँ जो कि एक सामान्य पाठक सोचता हो। यह नहीं कह सकता कि कितना सफल होता हूँ पर सोच की दिशा उसी तरफ रहती है। मैं, ना ही कोई समीक्षक हूँ और ना ही बड़ा लेखक, इसलिए इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी विचार मेरे निजी हैं और इन्हें अन्यथा किसी तरह न लें :)
"मसाला चाय" और "Terms & Conditions Apply" दोनों करीब करीब एक सी किताबें हैं जिसमें हिंगलिश का पुरज़ोर प्रयोग हुआ है। हिन्दी लेखन में वैसे तो मैं 'हिंगलिश' का हिमायती नहीं हूँ क्योंकि मैं इसे भाषा में भ्रष्टाचार मानता हूँ पर लेखक ने शायद इस ख्याल से यह किताबें लिखी हैं कि आज कि जो युवा बोलचाल भाषा है, जो कि ना ही शुद्ध हिन्दी है और ना ही शुद्ध अंग्रेजी है, को लेखन में इस्तेमाल किया जाए जिससे युवा पाठक अपने आप को इन किताबों के साथ जोड़कर देख सके। शायद यह प्रयोग सफल भी रहा है और, और भी कई किताबें इन्हीं पदचिन्हों पर चलते हुए आज पाठक-बाज़ार में प्रवेश कर चुकी हैं। तो पाठक अभिविन्यस्त (oriented) दृष्टि से देखें तो यह एक बढ़िया प्रयोग है पर भाषा की शुद्धता और उच्चता पर विचार करें तो उसमें संशय हो आता है।
दोनों ही किताबों ने कई छोटी-बड़ी कहानियों का एक पुलिंदा पेश किया है और सभी बेहद रोचक और आपको अपने अन्दर समेटने वाली हैं। क्योंकि यह युवाओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी कहानियाँ हैं, इसलिए ये इस तबके को तुरंत पसंद आएगी। इन कहानियों के पात्र हमारे ही इर्द गिर्द छोटे-बड़े शहरों में बसते हैं। शायद कोई कहानी आपकी अपनी भी हो, शायद आपके किसी दोस्त कि या फिर अखबार में पढ़े किसी खबर की, पर हैं ये हमारी ही। कई कहानियाँ जो छोटे शहरों की हैं आपको आपके अतीत में ले जाएँगी और वो अल्हड़ दिन याद दिला देंगी। छोटे शहरों में चुप्पी में जीती ये कहानियों को आवाज़ दी है इन किताबों ने तो बड़े शहर के युवाओं की आम ज़िन्दगी को भी बहुत ही सरल शब्दों और विचारों में पेश किया है दिव्य प्रकाश दुबे जी ने।
इस बात पर भी ज़ोर देना चाहूँगा कि ये दोनों किताबें ऐसी हैं जिनको चाहे आप बार बार पढ़ें पर हमेशा नई सी लगेगी वैसे ही जैसे जब भी आप अपने ख़ास दोस्तों से मिलते हैं तो नए नए से लगते हैं। ये कथाएँ आपकी दोस्त हैं क्योंकि ये आप ही के बीच की हैं, आपकी हैं।
संपूर्णतः कहूँ, तो मुझे ये दोनों किताबें बेहद आकर्षक लगी क्योंकि हल्का-फुल्का पढ़ने का भी अपना ही मज़ा है वरना प्रेमचंद, निराला, इत्यादि तो हम बचपन से ही पढ़ते आये हैं :)
यानि क़िताबें पढी जाएँ.. ऐसा आपका कहना है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल :)
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