तो जनाब सब कैसे हैं ?
पता नहीं अब यह ब्लॉग कोई पढ़ेगा भी या नहीं..
बिलकुल ठप्प पड़ा है.. जैसे कोई सरकारी कार्यालय हो..
करें भी क्या ? परीक्षाओं के बाद घर पहुँच गए और फिर वहां इतना आराम फरमाया है साहब जैसे की खरगोश आधे साल काम कर के सोने चला गया हो.. खैर घर पर खाना, पीना, सोना और घूमना, इसके अलावा तो शायद ही कुछ किया हो | और अब कुछ ही दिनों में फिर से काम पर पहुँच जाएँगे |
अब आज के पोस्ट की बातें शुरू करता हूँ |
मैं आज इस पोस्ट को पढ़ रहा था और यहीं पर एक सोच इस पोस्ट के रूप में बन कर उभरी है |
कसाब | आज एक ऐसा नाम हो गया है जो जन-जन के होठों पर आ गया है जैसे अमिताभ बच्चन ही हो | वाह ! भाई क्या किस्मत[?] पायी है, इतनी छोटी उम्र में इतना नाम ? हंसी आ रही है और रोना भी | हंसी इसके लिए की यह नाम वो "प्रख्यात" वाला नहीं है पर "कुख्यात:" वाला है और रोना इसलिए कि आज लगभग मेरी ही उम्र का इंसान एक ऐसी स्थिति में फंस गया है जहाँ से उसे खुदा भी नहीं निकाल सकता है |
अभी-अभी मैं अंतरजाल पर कसाब के बारे में और भी कुछ पढ़ रहा था तो उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल हुई | कसाब केवल २२ साल का नौजवान है और जिसे आतंकवादी जेहाद कहते हैं, उसके बारे में भी उसे कुछ नहीं पता है | हिरासत में जब उससे पूछा गया कि क्या वो कुरान (जो की मुस्लिमों की पवित्र ग्रन्थ है) में से कोई छंद जानता है ? तो उसका जवाब नकारात्मक था जो कि यह दर्शाता है कि जिसे आतंकवादी जेहाद के नाम पर अनजान युवकों पर थोप रहे हैं, वो असल में कुछ और ही है | उन्हें असली बात का पता चलने से पहले ही किसी और तरह से शिक्षित, माफ़ कीजियेगा अशिक्षित किया जा रहा है | बड़े अफ़सोस की बात है कि आज पाकिस्तान में ही नहीं पर दुनिया में हर देश, हर साम्राज्य में यही हो रहा है | हर असामाजिक तत्त्व, अपरिपक्व युवाओं को उसके असली मकसद से बहका रहे हैं और इन घिनौनी हरकतों में ढकेल रहे हैं |
मैं जब कसाब के बारे में पढ़ रहा था तो यह भी पता चला कि जब उसने अपने आस-पास खून से लथपथ लाशों को जहाँ-तहां पड़े हुए देखा तो उसकी हिम्मत भी धाराशाई हो गयी | असल बात यह है कि एक युवा मन इतना स्थिर नहीं होता की अपने सामने किसी लाश को खून से लथपथ देख सके | ऐसा तो तब भी देखा जाता है जब कोई अपना सामान्य स्थिति में अपनी आखों के सामने ही इस दुनिया को छोड़ के चला जाता है | उस समय घर के बुजुर्ग ही उस नौजवान को संभालते हैं | फिर यहाँ तो बात ही कुछ और थी | कसाब ने जब देखा की उसने अपने हाथों से इतने मासूमों की जान ली है तो हार कर कहने लगा कि उसे पाकिस्तान, अपने घर जाना है | उसे और नहीं जीना है | ऐसा पढ़ कर ही इतना दुःख होता है कि आज हमारा हम-उम्र ऐसे जाल में फंसा हुआ है जहाँ ज़िन्दगी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो चुकी है | केवल और केवल दुनिया में छाई अशिक्षा के कारण |
दो दिन पहले दूसरी बार "अ वेडनेज़डे" देख रहा था | लगा कि अब समय है कुछ करने का | आखिर क्यों हम एक आम मुर्ख मनुष्य - "अ कॉमन स्टुपिड मैन" बनकर ही इस ज़िन्दगी को जीकर ख़त्म कर देना चाहते हैं | आखिर ऐसी क्या बात है कि फिल्म को बहुत सराहने के बाद भी हम सिर्फ स्थिति में अपने आपको ढालना सीख जाते हैं | क्यों नहीं हम उस स्थिति का मुकाबला कर उस पर जीत हासिल करते हैं ? ऐसा क्या है जो हमें रोकता है ?
डर ?
अरे जनाब डरता तो एक बच्चा एक बिल्ली से भी है | जब तक यह आम आदमी अपने इस भीरु बिल से बाहर नहीं निकलेगा, तब तक वह बाहर की विशाल सुरमई, आनंदमयी और तेजस्वी दुनिया को कैसे देख पाएगा | जब मुंबई पर हमले हुए तब सबने लिखा और बहुत लिखा | इतना की आदमी पढ़ते-पढ़ते उम्र गुजार दे | मैंने भी एक पोस्ट लिखा और आज देख लीजिये सब ठप्प | वो कहते हैं ना - "हमें हर स्थिति में ढलने की मानो आदत सी हो गयी है" | कौन सा अपना कोई मारा है उस बेरहमी हमले में ? कौन सा ताज मेरा होटल था ? कौन सा मैं लोकल ट्रेन से सफ़र करता हूँ ? कौन सा मैं मुंबई में रहता हूँ ?
ठीक है जब हमारे ऊपर कोई AK-47 ले कर आएगा तब देखेंगे | अभी तो बस कमाओ और मौज करो |
और यह बिमारी केवल आपके साथ ही नहीं है पर मेरे साथ भी है | यहाँ पर हर एक इंसान की सोच बस इतनी संकीर्ण ही है | आज चाहते तो हम कुछ कर सकते थे | करीबन 7 महीनों के बाद भी भारतीय पुलिस कुछ नहीं आर पायी है, बजाय इसके की एक आतंकवादी को पकड़ना | पर कुछ नहीं होगा | फिर कल कोई विमान अपहृत हो जाएगा और फिर कोई इस आतंकवादी को छुड़ा कर ले जाएगा | और फिर ऐसे हजारों कसाब पैदा होंगे और हम दर-दर रोते फिरेंगे | तब हमें हमारी भूल का एहसास होगा और यही कहेगी ये निर्दयी दुनिया - "अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गयी खेत"
अपने आप को विकसित देश बताने से पहले इस विकास में अपने योगदान के बारे में चिंतन-मनन कीजियेगा और तब आप और मैं इस शर्म में डूब जाएंगे की हम तो अपने पूर्वजों के वजूद और रत्नों पर जी रहे हैं | न हमारा वजूद है और न ही हम विकसित |
और तब कहीं दूर से किसी धमाके की आवाज़ में आवाज़ आएगी - "अ वेडनेज़डे" |