सुधीर और मोहन बहुत ही करीबी दोस्त थे... सर्वसम्पन्न तो दोनों के परिवार थे पर एक जगह जा कर दोनों की राहें अलग हो जाती थीं | दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे और जैसा कि एक आम युवा-दिल होता है.. दोनों में काफी बहस छिड़ी रहती थी.. बालाओं को लेकर, परिवार को लेकर, देश को लेकर, नेताओं को लेकर..
एक दिन दोनों देश में भ्रष्टाचार के ऊपर विचार कर रहे थे |
सुधीर ने कहा – “इन नेताओं को तो एक ही पंक्ति में खड़े करके गोली मार देनी चाहिए | न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी | भ्रष्टाचार समाप्त !!”
मोहन ने कहा – “नेताओं को छोड़, पहले खुद को सुधार | टैक्स बचाने के चक्कर में जो तू फर्जी बिल दिखाता है, वो तो मत दिखा | वैसे भी तुझे पैसे की कमी नहीं है फिर `२००-`३०० बचाकर क्या हासिल करना चाहता है? भ्रष्टाचार तेरे अंदर से शुरू हो रही है |”
सुधीर ने कहा – “अरे वो मैं... छोड़ ना... `२००-`३०० से क्या फर्क पड़ता है? वैसे तूने कह ही दिया है तो अब से मैं हर महीने `५०० दान दूंगा.. खुश?”
वृत्तांत वहीँ समाप्त हो गया |
कई महीने बीत गए |
मोहन इमानदारी से टैक्स भर रहा है |
सुधीर आज भी फर्जी बिल दिखाकर `२००-`३०० बचा रहा है | `५०० वह अपने बालों को संवारने में दान कर रहा है |
“सुधार दूसरों में नहीं खुद में लाओ”
एक विडियो देखते जाइये `५०० पर ही है, आशा है अगली बार आप खर्च करने से पहले सोचेंगे:
यह विडियो अंतरजाल से ली गयी है.. यह मेरी खुद की नहीं है.. बनाने वाले को धन्यवाद...