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रविवार, 30 मार्च 2014

हो रहा महिला सशक्तिकरण!

अनिता और पूनम पहली बार कॉलेज में ही मिली थी और समय के साथ बहुत ही गहरी दोस्त बन गयी थीं। चूँकि उनकी संकाय भी एक ही थी तो क्लास जाना, परीक्षा के लिए पढ़ना, असाइनमेंट पूरा करना, इत्यादि इत्यादि सब साथ में होता था।

जब इतनी देर साथ रहते थे तो कई सारी चर्चाएं भी दोनों के बीच होती जो कि लड़कों, रिश्तों, प्रोफेसर्स, घर, देश, इत्यादि के इर्द-गिर्द घूमता था। महिला दिवस के आसपास मार्किट में महिला सशक्तिकरण को लेकर बेहद गरम लू चली। अख़बार, टीवी, ब्लॉग, फेसबुक, हर जगह कोई न कोई अपने मन की भड़ास उढ़ेल रहा था।

चित्र: साभार गूगल बाबा
एक बार कॉलेज की छुट्टी होने के बाद दोनों घर को निकली तो रास्ते में अनिता ने कहा, "महिला सशक्तिकरण के नाम पर जो आरक्षण का ढकोसला सरकार ने किया है, वह हमें सशक्त नहीं बनाएगा।"
इसपर पूनम ने भी हामी भरते हुए कहा, "सही कह रही हो। हम लड़कियों को पुरुषों की तरफ से विशेष व्यवहार या सुविधाओं की ज़रूरत नहीं है। हम खुद में सक्षम हैं और यह हम हर क्षेत्र में करके भी दिखा रही हैं।"

दोनों में इसी तरह सरकार की नीतियों और महिलाओं को ख़ास सुविधाएं दे कर महिलाओं को और कमज़ोर करने की बात पर रास्ते भर वार्तालाप हुई और वो ऐसी व्यवस्था को कोसती रहीं।

फिर दोनों घर जाने के लिए मेट्रो में चढ़ीं और तुरंत ही महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर बैठे दो नौजवानों को उठने को कहा और खुद वहाँ बैठकर महिला सशक्तिकरण पर विचार को आगे बढ़ाने लगीं।


जब तक ऐसी पढ़ी-लिखी महिलाएं इस सशक्तिकरण का सही अर्थ ढूंढती हैं, तब तक मेरी आवाज़ में एक गीत (राबता) सुनते चलिए यहाँ पर!

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