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रविवार, 25 जनवरी 2009

जय हो माल - जय हो !!!

आइये जनाब आज आप लोगों को बिट्स के महलों की बात बताएं :
जिस तरह राजाओं का राजा होता है महाराजा उसी तरह बिट्स में भवनों का राजा है :
पंडित मदन मोहन मालवीय भवन [ओह्ह आपको नहीं पता ये कौन सा भवन है ?? ये है माल भवन] |
यहाँ पर हम प्यार से (सही में प्यार से ??) इसे माल भवन बुलाते हैं |
फिलहाल यहाँ पर तृतीय वर्ष के छात्रों का वास (साहब वास नहीं वनवास कहिये) है |

कुछ रोचक जानकारियां जो की शायद इस राजा का पूरी तरह से वर्णन कर देगा :

1.) यह बिट्स में ऐसी जगह पर स्थित है जिसके करीबन ३०० मीटर अर्धव्यास [रेडीअस] तक कोई भी काम की चीज़ नहीं है (अब SAC का कितना काम है ?? केवल खाना खाने थोड़े ही ना आए है यहाँ) -
GYM-G = दूर (शरीर में सब अंजर-पंजर जंग-ग्रस्त हो गए हैं..धन्यवाद माल )
C'not = दूर (अच्छा है..खर्चा कम हो गया..मोबाइल और पेट दोनों का रिचार्ज अब कम से कम)
Akshay = दूर (यहाँ का सुपर-मार्केट...महीने भर की लिस्ट एक ही बार में लानी पड़ती है [तो आप समझ लीजिये की क्या होगा अगर संडास वाला साबुन बीच महीने में ख़त्म हो जाए तो!!! ] )
Insti = दूर (अच्छा ही है...अगर ५ मिनट पहले उठे तो क्लास वैसे ही लाईट हो जाता है और हम जाते भी कितना हैं ?? )
रेडी = है ही नहीं (बिट्स की लाइफ-लाइन ही नहीं है ...एक चीज़ जिसका यहाँ ना होना सबसे ज़्यादा खलता है )

2.) हम जैसे कुछ बदकिस्मत लोग पुराने माल में कैदी की ज़िन्दगी काट रहे हैं | बताता हूँ क्यों :
- यह भवन शायद आदम ज़माने का है...कब ढह जाए पता नहीं...बाहर से कोई किला लगता है जो जर्र-जर्र हो गया है | अन्दर से वैसा ही खोकला और कबूतरों का घोंसला |
- पहले यह लड़कियों का भवन हुआ करता था - इसलिए इंस्टी ने इसके चारों ओर ऊँची दीवार लगा दी थी | और जब इसके बाद भी उनके दहकते हुए दिल को लगा की कबूतर-बाजी केवल इससे नहीं रुकेगी तो जेल वाले जंगले और लगा दिए | अब यह कर नहीं हटाते हैं कि भविष्य में शायद फ़िर से यह लड़कियों का हॉस्टल हो जाए (मैं कहता हूँ - "पहले लडकियां तो लाओ !!!")

3.) मेरी विंग - इसका नाम है मैवरिक्स (दो "K" के साथ) |
- यहाँ पर आधे सेमेस्टर ट्यूबलाइट चलती है और आधे सेमेस्टर बल्ब |
- यहाँ की ट्यूबलाइट की स्विच नीचे वाले विंग में है (ताकि बिजली बिल कम आए)|
- यहाँ आजकल जन्मदिन पर कुत्ते नहीं आते हैं (बचा कुचा खाने) - मैं कहता हूँ पहले हमारे दोस्त तो ढूँढ लें इस विंग को बाकी कुत्ते-बिल्ली बाद में आ ही जाएँगे !!!
- यहाँ पर हॉस्टल के मुखिया भी आना पसंद नहीं करते हैं - क्योंकि उन्हें लगता है की वो वापसी का रास्ता भूल जाएँगे |
- यहाँ के संडास में गरम-पानी की कोई सुविधा नहीं है | अरे यहाँ क्या आस-पास के कई संडासों में ( अभी कुछ दिनों पहले कई लोग तौलिया और बाल्टी के साथ भवन के चक्कर काटते नज़र आए थे ) भी नहीं है |
- यहाँ पर धूप, पानी, हवा, मिटटी और आग ("किसी" भी काम के लिए) का आना/लाना सख्त मना है |
- यहाँ पर हर गेट/खिड़की/या दीवार पर हाथ/पैर मारने से पुरानी पपड़ीयां बहुत ही खूबसूरत पैटर्न के साथ नीचे बिछे टाईल्स (टाईल्स ???) को चूमती है | आपको अपने कपडों का ख़ास ध्यान रखना पड़ता है |
- यहाँ हर सेमेस्टर के शुरुआत में संडास के बगल वाले कमरे में पानी की सीलन आ जाती है जो कि चौकी के अनुसार काफ़ी आम बात है |

अब बताते-बताते तो मैं भी थक गया हूँ | इंस्टी वालों ने खूब सोचकर यह भवन हम जैसे 3rd year EEEites को दिया है | बोलते हैं जिस तरह से CDCs में प्रोफ़ेसर तुम्हारी जान लेते हैं तो ये भवन अब और क्या लेगा | पड़े रहो इस निर्वासन (Exile) में |

हर जगह से दूर...हर भवनों से जुदा..राजाओं का महाराजा खड़ा है हम जैसे अभागों को अपनी गर्त में छुपाए हुए जहाँ से केवल Clock Tower की घड़ी (माफ़ कीजियेगा "घड़ा") ही दिखता है....

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