नया क्या?

बुधवार, 14 सितंबर 2011

तेरे-मेरे बीच

हिन्दी दिवस फिर से आया है आज.. मैंने सोचा कि इस हिन्दी दिवस पे कुछ नया किया जाए.. जो पहले कभी नहीं किया हो... अपने पोस्ट "तीन साल ब्लॉगिंग के" में मैंने लिखा था कि श्रृंगार रस को छोड़कर हर रस का आनंद लिया है मैंने अपनी लेखनी में.. तो इस बार हिन्दी दिवस पर कुछ नया करने की फितरत में अपनी कविता में श्रृंगार का श्रृंगार कर रहा हूँ.. मैं इस रस में नौसिखिया हूँ.. सभी ज्ञानी जनों से माफ़ी और राय दोनों की अपेक्षा है.. आपकी हर राय उत्साहवर्धन का काम करेंगी.. जय हो!

वो लरज़ते हुए होंठों का धीमे से ऊपर उठ जाना
और मेरा उस इशारे को बेबाक समझ जाना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


वो भीड़ के शोर में सब कुछ गुम जाना
तेरा, मेरी आँखों से एक किस्सा पढ़ जाना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


वो कई दिनों की चुप्पी का सध जाना
उस खामोशी में से संगीत निकालना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


तेरा मेरे हाथों को धीरे से छोड़ जाना
उस छोड़ने में तेरी रूठने की अदा पढ़ जाना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


तेरा उन आँखों को धीमे से बंद कर लेना
उसमें तेरी हामी को पढ़ लेना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


तेरा मेरे सर को धीमे से चूम लेना
उस स्पर्श में तेरे प्यार को जी जाना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


तेरा उन आखों में शरारत का भर आना
उस शरारत में तेरा बचपन देख जाना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


तेरा उन सुर्ख आँखों से मोतियाँ बिखेरना
मेरा उन मोतियों को सहेज के समेटना
बस तेरे-मेरे बीच की बात है...

और जाते-जाते एक ख़ुशी की बात... मेरी और मेरी माँ की कुछ कविताएँ "अनुगूंज" में प्रकाशित हुई हैं जिसकी संपादिका "श्रीमती रश्मि प्रभा जी" हैं... उनको विशेष आभार और बाकी सभी लोगों का जिसका इस पुस्तक को प्रकाशित करने में सहयोग रहा...
यह मेरे, मेरे परिवार और मेरे दोस्तों के लिए बहुत ही ख़ुशी की बात रही जिसका आप सब भी हिस्सा हैं..

29 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ क्या लिखते हो पढने वाला गर महसूस कर सके क्या लिका है उस से बेहतर कोई कविता नहीं ...

    दिल तक छु गई वो हर पंक्ति जो लिखी तुमने

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  2. मन को छू गई.... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। ..हिन्दी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाए।

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  3. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  4. मन को छू गई.... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. तेरा मेरे सर को धीमे से चूम लेना
    उस स्पर्श में तेरे प्यार को जी जाना
    बस तेरे-मेरे बीच की बात है...
    koi shak nahi...

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  6. ये काम ही नौसिखिया लोगों का है...बाकी तो बहुत चोट खाए बैठे हैं...मुबारक हो अब सही रस्ते पे आये हो...

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  7. तेरा उन सुर्ख आँखों से मोतियाँ बिखेरना
    मेरा उन मोतियों को सहेज के समेटना बस तेरे-मेरे बीच की बात है..क्या बात है....बहुत खूब ! दिल तक छु गई हर पंक्ति। भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  8. श्रृंगार रस की बढ़िया रचना .

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  9. अब तो बात नुमाया हो गई ,
    तेरे-मेरे बीच बचा क्या ?

    फिर भी ,अच्छा श्रृंगार किया है,देखना बस 'वो' नाराज़ न हो जाए !

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. वो चिलम उठाना उठा कर गिराना
    तेरा मुस्कराना गज़ब ढा गया :)

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  12. वो कई दिनों की चुप्पी का सध जाना
    उस खामोशी में से संगीत निकालना
    बस तेरे-मेरे बीच की बात है...

    अच्छी कविता और उसकी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  13. माफ़ कीजियेगा, जीवन की आपाधापी में वक्त ही कुछ कम पड़ गया है, पर आपकी पंक्तियां लाजवाब हैं,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  14. श्रृंगार रस की भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति| शुभकामनाएं|

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  15. बहुत खूब .. इस श्रृंगार मों भी मज़ा है ... अच्छी रचना है ...

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  16. तेरे मेरे बीच की ..... बहुत अच्छी लगी.

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  17. भावों को शब्‍दों में बांधकर यूं श्रृंगार करना ..आपकी कलम का जादू चल गया यहां ...शुभकामनाएं बहुत ही अच्‍छा लिखा है बधाई ।

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  18. तेरा मेरे सर को धीमे से चूम लेना
    उस स्पर्श में तेरे प्यार को जी जाना
    बस तेरे-मेरे बीच की बात है...


    बहुत खूबसूरत ... पूरी रचना भावपूर्ण है ..

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  19. आपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.

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  20. प्रतीक भाई
    शृंगार रस में बढ़िया प्रयास किया है …
    अब कदम बढ़ा ही दिया है तो … सफ़र जारी रहे …
    बहुत उम्मीदें हैं :)


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. bahut sundar kavita
    kuch baate sirf aankhon me hi kahi jaani chahiye :)

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