बस खचाखच भरी थी और लोग जैसे तैसे अपने से ज्यादा अपने जेबों को संभाल रहे थे..
तभी निशा बस में चढ़ी क्योंकि उसे दूसरे बस के जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी..
एक नवयुवक ने नवयुवती को देखा तो झट खड़ा होने को आया..
और कहा - "आप बैठिये, मैं खड़ा हो जाता हूँ |"
निशा ने हाथों से इशारा करते हुआ कहा - "धन्यवाद, पर लड़कियां अब लड़कों की मोहताज नहीं है | आप ही बैठिये |"
लड़का शर्मसार हो गया और उसने अपना सर झुका लिया |
निशा ने अपना ही नहीं परन्तु देश की हर लड़की का सर ऊँचा कर दिया था |
आस-पास के लोग सोच में पड़ गए...
बस चलती रही...
बदलाव हो रहा है....समाज में....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ कर....
सही बात है
जवाब देंहटाएंकहाँ अबला रही औरत कहाँ बेबस ही लगती है
पहुँची आस्मा तक वो रहा अब क्या सिखाना है
अच्छी रचना शुभकामनायें
भाई जी ऐसी घटना पहली बार सूननें को मिली है , यहाँ तो लड़कियाँ बैठे को ऊठा देती हैं ।
जवाब देंहटाएंबड़ी दुविधा में दाल दिया आपने तो? मुझे काफी सोच विचार के बताना पडेगा कि आखिर सही कौन था ?
जवाब देंहटाएंbadlaav hua ya nahi ye alag baat hai lekin ..kahani asardaar rahii.
जवाब देंहटाएंभाई जी,
जवाब देंहटाएंबचपन से ही आदत डाली गई थी....की महिलाओ के लिए सीट छोडनी चाहिए.....इसी असमंजस में कई सफ़र निकलते हैं....की अगर खड़े होते हैं तो बड़ा लम्बा सफ़र है.....खड़े खड़े गुजारना पड़ेगा....अगर नहीं होते हैं तो सोछ्ते हैं.........ये सही बात नहीं है..........आपने इस पूरे फेर से ही निकाल दिया...... :) बकिओं का तो पता नहीं..........पर मेरे आलस को आपने जरुर बढ़ावा दे दिया.....
बाकि आपके चिठ्ठे पढके अच्छा लगा.....
जय राम जी की