हमारी आदत ही हो गयी है.. जो नेता दिखे - घूसखोर है.. जो पुलिस वाला दिखा - घूसखोर है... जो सरकारी कर्मचारी दिखे - घूसखोर है..
माना की इन सब मामलों में हमारे तुक्के सत-प्रतिशत सही बैठते हैं.. पर कुछ दिनों पहले दुनिया का सबसे बड़ा घूसखोर खोजा मैंने..
हुआ यूँ की एक मंदिर गया था दोस्त के साथ.. काफी नामी मंदिर है.. वैसे तो मेरी मंदिरों से ज्यादा अपने कर्म में ही आस्था है पर यदा-कदा चला जाता हूँ हाजिरी लगाने जिससे भगवान को याद रहे की मैं अभी धरती पर हूँ और जिंदा हूँ..
तो जैसा की हर आम आदमी के साथ होता है, मैं भी आम जनता की तरह आम पंक्ति में खड़ा हो गया.. वही आम बातें चल रही थी की किसके पड़ोसी ने किस तरह सरे-आम कुछ आम लोगों के सामने कुछ हराम बातें कह दी.. वही आम बातें चल रही थी और मैं पूरे तन्मयता के साथ इन आम लोगों की आम बातों की मार एक आम इंसान की तरह झेल रहा था..बीच-बीच में गोपियाँ नज़र आती तो दोस्त से कहा.. वो बोलता "अरे मंदिर में आये हो.. कम से कम यहाँ तो कुछ लज्जा करो.." तो मैंने भी पलट कर जवाब दिया - "गुरु, अपने सखा का ही तो धाम है और फिर क्या उनकी १६००० सखियाँ नहीं थीं? किसी ने कुछ नहीं कहा.. और कौन सा मैं जिसे देख रहा हूँ, उसे सखी बना रहा हूँ.. देखने में कोई पाप थोड़े ही न लगता है.. कृष्ण धाम में हैं तो गोपियों को देखना कोई पाप नहीं!" मेरे जवाब से मेरा दोस्त लाजवाब और अब उसकी शंका भी समाप्त.. खैर जहाँ इतनी भीड़ हो वहां समय कट ही जाता है समझ लीजिये..
कुछ आधे-पौन घंटे बाद अन्दर प्रवेश हुए... क्या ज़माना है.. भगवान को अपनी और हमारी रक्षा के लिए मेटल डिटेक्टर की ज़रूरत पड़ने लगी है.. क्या कहें.. कलयुग आ गया है...
फिर अन्दर की पंक्ति में और १५ मिनट खड़े रहे.. ऐसा लग रहा था की वोटिंग करने आये हैं या किसी बड़े आदमी से मिलने आये हैं.. वरना भगवान से मिलना कौन बड़ी बात है? वो तो हर जगह है.. बस पुकारो मन से और दौड़ा चला आता है... (सब मनगढ़ंत बातें हैं.. कितनी बार बुलाया उसे एक्जाम हॉल में पर कभी नहीं आया.. शायद अजीबों-गरीब प्रशोनों को देख कर उसने प्रकट होना उचित नहीं समझा.. और मेरी माने तो अच्छा ही किया.. वरना डिप्रेशन के शिकार हो सकते थे हमारे भगवान)...
अब आलम ऐसा था की दो-तीन मंदिरों को मिलाकर एक मंदिर बना था.. और आपको हर मंदिर का दौरा करना था... बस बात इतनी सी थी की मुख्य-मंत्री को हवाई जहाज मिलती है और हमें "फ्लोट" चप्पल !!
पर जितनी देर मंत्री किसी बाढ़-ग्रस्त इलाके में रहता है.. बस उतनी ही देर हम भी वहीँ रहे.. कुछ सेकंड ही समझ लीजिये.. अन्दर पंडा बोल रहा था... "चलते रहो, चलते रहो" मानो रात का चौकीदार कह रहा हो - "जागते रहो, जागते रहो"... और मैं भी आम आदमी की तरह उनके आज्ञा का पालन करते हुए आगे बढ़ चला..
बाहर आया तो दोस्त ने कहा - "हाथ काहे नहीं जोड़े भगवान के सामने?"
हमने कहा - "कोई दिखता तो हाथ उठते ना !! जब भगवान तो छोड़ो.. मूर्ती भी नज़र नहीं आई तो ख़ाक हाथ जोड़ता... राजधानी की रफ़्तार से बाहर आ गए.."
जब हम प्रमुख मंदिर में पहुंचे तो वहां तो मेला ही लगा हुआ था... फिर वही भागम-भाग.. पंडा आगे खड़े कुछ लोगों को भगवान का नाम जपवा रहा था.. मैंने सोचा मुझे भी जपवा देते तो कम-स-कम कुछ महीनों का तो पाप धुल ही जाता... बेकार ही इतनी दूर आये.. पाप तो कमबख्त वहीँ का वहीँ है..
खैर सोचा अब निकलते हैं.. दर्शन तो हो ही गए (पता नहीं किसके दर्शन किये !!).. निकलने से पहले हम लोगों को पूरे आधे घंटे चक्कर लगाना पड़ा.. मंदिर के अन्दर बाज़ार खुला हुआ था.. धर्म-ग्रन्थ से लेकर खाने की चीज़ों से लेकर पहनने-ओढने की चीज़ें सब कुछ बिकाऊ थीं.. और वो भी मंदिर प्रांगण में.. दिल देख कर गद्द-गद्द हो उठा.. वाह भगवान आजकल तू भी व्यापर करने लगा है.. अपना पेट पालने के लिए..??
तभी मैंने अपने दोस्त से पूछा - "यार, कुछ लोग रस्सी के उस पार थे.. उनको कोई नहीं भगा रहा था.. आराम से दर्शन कर रहे थे.. और फिर उस पंडा ने भी वैसे ही कुछ लोगों को भगवान नाम रटवाया था.. ये क्या चक्कर है?"
उसने कहा - "देखो गुरु, यहाँ अन्दर घुसने से पहले एक टिकट खरीदना पड़ता है..पैसे दे कर... जिससे आप भगवान को करीब से और अच्छे से जान सको.. तो अगर वो टिकेट खरीदे होते तो आज आम आदमी की ज़िन्दगी नहीं जी रहे होते... तो जिन लोगों ने पैसे देकर भगवान को खरीदा.. वही आम खा पाए.. हम आम लोग गुठलियाँ ही गिनते रह गए !!"
मैंने कहा - "लो कल्लो बात, इससे अच्छा तो मंदिर ना ही आओ... चलो ऐसी चीज़ें देख ली है तो मेरा विश्वास भी पक्का हो गया है.... मंदिरों में अब न जाऊंगा.. लोगों ने यहाँ के भगवान को भी घूसखोर बना दिया है.. जो घूस दे वही बड़ा..हाँ?"
बस यही कहके निकल आये..
तो मेरा पहला विश्वास आज भी कायम है... भगवान मंदिरों में नहीं, दिलों में मिलता है.. अपने कर्मों में मिलता है... एक गाने के बोल याद आ गए (पूरे बोल नीचे दिए हुए लिंक में देखिये).. उसी से इस घूसखोर किस्से को ख़त्म करना चाहूँगा..
इस पोस्ट का गीत : झूमो रे (कैलाश खेर)
माना की इन सब मामलों में हमारे तुक्के सत-प्रतिशत सही बैठते हैं.. पर कुछ दिनों पहले दुनिया का सबसे बड़ा घूसखोर खोजा मैंने..
हुआ यूँ की एक मंदिर गया था दोस्त के साथ.. काफी नामी मंदिर है.. वैसे तो मेरी मंदिरों से ज्यादा अपने कर्म में ही आस्था है पर यदा-कदा चला जाता हूँ हाजिरी लगाने जिससे भगवान को याद रहे की मैं अभी धरती पर हूँ और जिंदा हूँ..
तो जैसा की हर आम आदमी के साथ होता है, मैं भी आम जनता की तरह आम पंक्ति में खड़ा हो गया.. वही आम बातें चल रही थी की किसके पड़ोसी ने किस तरह सरे-आम कुछ आम लोगों के सामने कुछ हराम बातें कह दी.. वही आम बातें चल रही थी और मैं पूरे तन्मयता के साथ इन आम लोगों की आम बातों की मार एक आम इंसान की तरह झेल रहा था..बीच-बीच में गोपियाँ नज़र आती तो दोस्त से कहा.. वो बोलता "अरे मंदिर में आये हो.. कम से कम यहाँ तो कुछ लज्जा करो.." तो मैंने भी पलट कर जवाब दिया - "गुरु, अपने सखा का ही तो धाम है और फिर क्या उनकी १६००० सखियाँ नहीं थीं? किसी ने कुछ नहीं कहा.. और कौन सा मैं जिसे देख रहा हूँ, उसे सखी बना रहा हूँ.. देखने में कोई पाप थोड़े ही न लगता है.. कृष्ण धाम में हैं तो गोपियों को देखना कोई पाप नहीं!" मेरे जवाब से मेरा दोस्त लाजवाब और अब उसकी शंका भी समाप्त.. खैर जहाँ इतनी भीड़ हो वहां समय कट ही जाता है समझ लीजिये..
कुछ आधे-पौन घंटे बाद अन्दर प्रवेश हुए... क्या ज़माना है.. भगवान को अपनी और हमारी रक्षा के लिए मेटल डिटेक्टर की ज़रूरत पड़ने लगी है.. क्या कहें.. कलयुग आ गया है...
फिर अन्दर की पंक्ति में और १५ मिनट खड़े रहे.. ऐसा लग रहा था की वोटिंग करने आये हैं या किसी बड़े आदमी से मिलने आये हैं.. वरना भगवान से मिलना कौन बड़ी बात है? वो तो हर जगह है.. बस पुकारो मन से और दौड़ा चला आता है... (सब मनगढ़ंत बातें हैं.. कितनी बार बुलाया उसे एक्जाम हॉल में पर कभी नहीं आया.. शायद अजीबों-गरीब प्रशोनों को देख कर उसने प्रकट होना उचित नहीं समझा.. और मेरी माने तो अच्छा ही किया.. वरना डिप्रेशन के शिकार हो सकते थे हमारे भगवान)...
अब आलम ऐसा था की दो-तीन मंदिरों को मिलाकर एक मंदिर बना था.. और आपको हर मंदिर का दौरा करना था... बस बात इतनी सी थी की मुख्य-मंत्री को हवाई जहाज मिलती है और हमें "फ्लोट" चप्पल !!
पर जितनी देर मंत्री किसी बाढ़-ग्रस्त इलाके में रहता है.. बस उतनी ही देर हम भी वहीँ रहे.. कुछ सेकंड ही समझ लीजिये.. अन्दर पंडा बोल रहा था... "चलते रहो, चलते रहो" मानो रात का चौकीदार कह रहा हो - "जागते रहो, जागते रहो"... और मैं भी आम आदमी की तरह उनके आज्ञा का पालन करते हुए आगे बढ़ चला..
बाहर आया तो दोस्त ने कहा - "हाथ काहे नहीं जोड़े भगवान के सामने?"
हमने कहा - "कोई दिखता तो हाथ उठते ना !! जब भगवान तो छोड़ो.. मूर्ती भी नज़र नहीं आई तो ख़ाक हाथ जोड़ता... राजधानी की रफ़्तार से बाहर आ गए.."
जब हम प्रमुख मंदिर में पहुंचे तो वहां तो मेला ही लगा हुआ था... फिर वही भागम-भाग.. पंडा आगे खड़े कुछ लोगों को भगवान का नाम जपवा रहा था.. मैंने सोचा मुझे भी जपवा देते तो कम-स-कम कुछ महीनों का तो पाप धुल ही जाता... बेकार ही इतनी दूर आये.. पाप तो कमबख्त वहीँ का वहीँ है..
खैर सोचा अब निकलते हैं.. दर्शन तो हो ही गए (पता नहीं किसके दर्शन किये !!).. निकलने से पहले हम लोगों को पूरे आधे घंटे चक्कर लगाना पड़ा.. मंदिर के अन्दर बाज़ार खुला हुआ था.. धर्म-ग्रन्थ से लेकर खाने की चीज़ों से लेकर पहनने-ओढने की चीज़ें सब कुछ बिकाऊ थीं.. और वो भी मंदिर प्रांगण में.. दिल देख कर गद्द-गद्द हो उठा.. वाह भगवान आजकल तू भी व्यापर करने लगा है.. अपना पेट पालने के लिए..??
तभी मैंने अपने दोस्त से पूछा - "यार, कुछ लोग रस्सी के उस पार थे.. उनको कोई नहीं भगा रहा था.. आराम से दर्शन कर रहे थे.. और फिर उस पंडा ने भी वैसे ही कुछ लोगों को भगवान नाम रटवाया था.. ये क्या चक्कर है?"
उसने कहा - "देखो गुरु, यहाँ अन्दर घुसने से पहले एक टिकट खरीदना पड़ता है..पैसे दे कर... जिससे आप भगवान को करीब से और अच्छे से जान सको.. तो अगर वो टिकेट खरीदे होते तो आज आम आदमी की ज़िन्दगी नहीं जी रहे होते... तो जिन लोगों ने पैसे देकर भगवान को खरीदा.. वही आम खा पाए.. हम आम लोग गुठलियाँ ही गिनते रह गए !!"
मैंने कहा - "लो कल्लो बात, इससे अच्छा तो मंदिर ना ही आओ... चलो ऐसी चीज़ें देख ली है तो मेरा विश्वास भी पक्का हो गया है.... मंदिरों में अब न जाऊंगा.. लोगों ने यहाँ के भगवान को भी घूसखोर बना दिया है.. जो घूस दे वही बड़ा..हाँ?"
बस यही कहके निकल आये..
तो मेरा पहला विश्वास आज भी कायम है... भगवान मंदिरों में नहीं, दिलों में मिलता है.. अपने कर्मों में मिलता है... एक गाने के बोल याद आ गए (पूरे बोल नीचे दिए हुए लिंक में देखिये).. उसी से इस घूसखोर किस्से को ख़त्म करना चाहूँगा..
"... मंदिर तोड़ो, मस्जिद तोड़ो, इसमें नहीं मुज़ाका है,
दिल मत तोड़ो किसी का बन्दे, ये घर ख़ास खुदा का है..."
दिल मत तोड़ो किसी का बन्दे, ये घर ख़ास खुदा का है..."
इस पोस्ट का गीत : झूमो रे (कैलाश खेर)
aur sab to sahi hai magar bhagwan ko ghooskhor mat kahiye..........kya unhone neeche aakar kisi se kaha hai ki meri raksha karo ya mere darshan ki ticket kharido..........ye duniya hai ..........aisa hi karti rahegi apne swarth ke liye bhagwan ko bhi na bakhshegi.
जवाब देंहटाएंye to baat hai hi sahi ki har dil mein bhagwan basta hai to kisi dil ko na todo.
"कुछ आधे-पौन घंटे बाद अन्दर प्रवेश हुए... क्या ज़माना है.. भगवान को अपनी और हमारी रक्षा के लिए मेटल डिटेक्टर की ज़रूरत पड़ने लगी है.. क्या कहें.. कलयुग आ गया है..."
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा-हा, बहुत खूब ! लेकिन घूसखोर वाली मानसिकता देने लेने वाले से देने वाले की ज्यादा विकृत है ! जाकी होय भावना जैसी .... अब देखिये न भगवान् या खुदा के नाम पे कितने पशु काट लेते है एक ही दिन में !
घूस देकर पहुँचो और फिर पहुंच कर घूस दो ।
जवाब देंहटाएंआदमी से तो भगवान को भी घूस लेना पडता है , तो फिर आदमी की क्या औकात ।
सही है मगर किसका कितना हिस्सा...ये नजरिया भी सही रहा इसे देखने का.
जवाब देंहटाएंbhagwaan ko bhautikta ki paridhi me khojoge to bhog me aasakt ishwar hi milega. Tum bhi to bhagwaan ko ek bade mandir me khojne gaye the.
जवाब देंहटाएंJaisa khoja waisa mila. Bada mandir, bada bhagwaan.
यहाँ भगवान घूस खोर नहीं हैं बल्कि उनके पुजारी है। वैसे भी घूस तब ही बंद होगी जब लोग देना बंद करेंगे। कृष्ण की तरह अगर आप गोपियाँ रखने में आपकी काफी दिलचस्पी लगती हैं। याद रखे कृष्ण ही थे जिन्होंने अपनी मुंह बोली बहन द्रौपदी को चीर हरण से बचाया था। उम्मीद है कि अगर ऐसा कोई समय आया तो उस वक़्त आप आम इंसान बनकर दुम दबाकर भागेंगे नहीं।
जवाब देंहटाएं""भगवान को अपनी और हमारी रक्षा के लिए मेटल डिटेक्टर की ज़रूरत पड़ने लगी है..""
जवाब देंहटाएंcool lines
too good!! especially loved the last two lines..!
जवाब देंहटाएंit reminds me of the lines wriiten by a marathi poetess:
hirya motyane sajala marwadyacha balaji
gareebacha vithoba kandapolilahi raji
they point out the contrast between balaji, adorned in jewels, and vitthal bhagwaan, the god of the poor, who's happy even with a dry roti and onions :)