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रविवार, 3 नवंबर 2013

इस दिवाली तो बस..

इस दिवाली एक छोटी सी कृति उन तमाम लोगों के लिए, उन तमाम लोगों की तरफ से, जो यह दिवाली मेरी ही तरह अपने घर से दूर रहेंगे। मेरा तो यह मानना है कि आज के इस भगदड़ ज़िन्दगी में जब भी आप अपने घर-परिवार-दोस्तों के साथ होते हैं, तभी दीवाली-होली-ईद-रमज़ान मनती है।
पर जनाब यादों का सैलाब तो हर किसी को बहा ले जाता है फिर आप सब भी अपने अपने सैलाबों में बहते रहिये। जहाँ भी हों, खूब हर्षोल्लास से दीवाली मनाएँ! हार्दिक शुभकामनाएं!

याद है मुझे वो दिवाली से पहले की हलचल
जब पूरा घर इधर का उधर हुआ रहता था
कोई झाड़ू, तो कोई हथोड़ा लिए लगा हुआ था
जब चाय की चुस्कियों का होता था अल्पविराम
और कमर टूटने के बाद का आराम
अब
अगले दफे आऊंगा घर दिवाली पर
तब दोहराएँगे यही काम
इस दिवाली तो बस "राम राम"

याद है मुझे वो शेरवानी जो पहनी थी पिछली दिवाली पर
दुरुस्त जो लगना था हमें इश की चौखट पर
क्या खूब सजाया था वो पूजन-मन
गाये थे हमने मन्त्र, आरती, भजन
इस दिवाली तो पजामे में ही बीतेगी शाम
अब
अगले दफे आऊंगा घर दिवाली पर
तब गाएंगे झूमेंगे हम सब तमाम
इस दिवाली तो बस "राम राम"

याद है मुझे वो खुशबू बेसन के सिकने की
कभी-कभी हम भी दो-चार हाथ चला दिया करते थे
और वो दाल के हलवे का स्वाद मुँह में आज भी जमा है
जिसे खूब जम के हम सब खाया करते थे
इस दिवाली तो बाजारू मिठाइयों से ही चलेगा काम
अब
अगले दफे आऊंगा दिवाली पर
तब डट के लुटाएंगे पकवानों पर जान
इस दिवाली तो बस "राम राम"

याद है मुझे वो बारूद की सुगंध आज भी
जब घंटों बजाते थे पटाखे चौक पर
कभी डर-डर के, कभी सर्र सर्र से
लगाते थे फुलझड़ी उस सुई सी नोक पर
इस दिवाली तो बस दर्शन का होगा काम
अब
अगले दफे आऊंगा दिवाली पर
तब लगाएंगे चिंगारी बेलगाम
इस दिवाली तो बस "राम राम"

याद है मुझे वो अगले दिन का मेल मिलाप
जब शहर का चक्कर लगाते थे दिन रात
कभी इस डगर, कभी उस के घर
हँसी ठहाके, सौ सौ बात
इस दिवाली तो खुद से मिलाएंगे तान
अब
अगले दफे आऊंगा दिवाली पर
तब गप्पों की खुलेगी खान
इस दिवाली तो बस "राम राम"
इस दिवाली तो बस "राम राम"

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