२ दिन बाद होली होने के कारण मेट्रो में काफी भीड़ थी.. लोग अपने-अपने घर पहुँचने की जल्दी में थे और शुक्रवार होने के कारण भीड़ कुछ ज्यादा ही हो गयी थी..
मैं भी अपने घर जाने के लिए मेट्रो में चढ़ा हुआ था और मेट्रो की हालत ऐसी कि तिनका रखने तक की जगह नहीं..
मेरे ठीक सामने एक दंपत्ति खड़ा था.. दोनों उम्र में काफी छोटे लग रहे थे और माँ के गोद में ५-६ महीने का बच्चा भी था.. बच्चा रो रहा था और बार-बार दोनों को परेशान कर रहा था और सीट न होने के कारण परेशानी और बढ़ गयी थी..मैं भी अपने घर जाने के लिए मेट्रो में चढ़ा हुआ था और मेट्रो की हालत ऐसी कि तिनका रखने तक की जगह नहीं..
मेरे सामने एक हट्ठा-कट्ठा नौजवान, एक लैपटॉप बैग लिए, चश्मा चढ़ाए आराम से सो रहा था..
मैंने उसे हिलाते हुए कहा - "सर, अगर आप अपनी सीट बहनजी को दे दें तो बेहतर होगा.. बच्चा परेशान कर रहा है"
उसने उस महिला की तरफ देखते हुए तपाक से गुस्से में कहा - "नहीं, मुझे उठने में दिक्कत है" और आँखें फिर बंद कर लीं..
यह सुनकर मैं तो दंग रह गया पर इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, बगल में बैठा एक वैसा ही नौजवान उठ खड़ा हुआ और अपनी सीट बहनजी को दे दी..
वह नौजवान ना ही लैपटॉप बैग लिए हुए था, ना ही चश्मा चढ़ाए और ना ही उसकी वेशभूषा उसके आर्थिक स्थिति के सही होने का प्रमाण दे रहा था..
मुझे झटका लगा और मैं सोचने लगा - पढ़ा लिखा और धनी कौन था? यह कि वो?
और मैं दोनों को एक-एक करके देखते हुए इसी सोच में डूबा रहा...
धनी हम अपने संस्कारों से होते हैं न कि पैसे से आज कल ऐसा बहुत जगह सुनने को मिल जाता है ...आपका कहना सही है पढ़े लिखे अशिक्षित ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंयही प्रश्न भविष्य के मूल प्रश्न होने वाले हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे हैरत इस बात कि है की वो सोता हुआ लैपटॉप बैग पकड़ा हुआ इंसान अपने मुह से फुलझड़ियाँ नहीं निकाल पाया ... वरना आजकल कोई मुफ्त में न तो ज्ञान लेता है न ज्ञान दे पाता है
जवाब देंहटाएंदुःख की बात येही है के स्कूली और कालेज की शिक्षा हमें बेहतर इंसान नहीं बना पाती...हमारे संस्कार अगर बुरे हैं तो शिक्षा का हम पर कोई असर नहीं होता...ये हमारा दुर्भाग्य है के हम सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे में सोचते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
a bitter truth !
जवाब देंहटाएंपढे-लिखे और सुसंस्कृत में अंतर होता है :)
जवाब देंहटाएंयह हमारे देश में जो शिक्षा व्यवस्था चालू है उसकी नाकामयाबी है ...
जवाब देंहटाएंप्रिय प्रतीक भाई
जवाब देंहटाएंसस्नेहाभिवादन !
आपकी संस्मरणात्मक लघु कथा अच्छी है । सच के बिल्कुल क़रीब है ।
असहिष्णुता , संवेदनहीनता , घोर स्वार्थपरायणता तथाकथित सुशिक्षित साधन संपन्न लोगों में ही अधिक पाई जाती है । … और वह शहरी या महानगर का आदमी हो तो करेला ऊपर से नीमचढ़ा वाली स्थिति होती है …
बात चुभने वाली लग सकती है , लेकिन सत्य कड़वा होता है , यह भी याद रखना ज़रूरी है …
नवरात्रि की शुभकामनाएं !
साथ ही…
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
yes, you have pointed out very correctly. society is cynical today. no-one would do anything unless he himself derives benefit from his doing.
जवाब देंहटाएंYou have exposed the true face of society by this post.
I am totally in agreement with you prateek, but don't you think some people won't help others because they would think that they are being cheated/misused? What shall one do in that case?(I am not referring to this particular situation, but a general situation). strangers can't be trusted easily.
For instance, say: you are in a long queue of ATM or any other government office, a person comes and says that he is urgent need of money and falling short of time because he needs to go to a hospital (and apparently, he was lying about this)
a morally ethical person would perhaps allow him to come before him and it doesn't matter much. But the point is people mis-use others and they can't be trusted. so, isn't it good to be cynical? Isn't it good to be selfish? Just follow the rules, or be a hypocrite?
PS: I wanted to respect your blog dedicated to our national language and put my comment in hindi but not used to hindi typing.
@tapan: since you have asked a qn i'll reply it through a comment (which i generally dont do)
जवाब देंहटाएंthe answer to the qn is tht i wont give in to other person's selfishness or cheating attitude.. i'll feel that this person is in need and so i'll help without giving a 2nd thought abt his intentional malice.. i'll be happy helping him.. the pt is u shudnt stop doing right things just bcoz there r many ppl around who r doing unethical stuffs.. u shudnt be affected in a wrong way.. i will follow this.. and i hope that u'll also take the same route.
P.S.- i dont mind u sharing yr thoughts in english.. happy tht ppl r still enjoying reading in hindi and thts all i want.. and ya its Pratik not Prateek (i wud expect u to correct this atleast.. dude 4yrs together.. u cant make a mistake :D )
शिक्षित होना और संस्कारित होना दोनों अलग अलग बात है.आजकल शिक्षित आदमी ही सबसे ज़ियादा असंस्कारित,गुंडा और लफंगा हो गया है.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। ऐसे लोगों का प्रतिशत आजकल ज्यादा है।
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
बढ़िया !
जवाब देंहटाएंशिक्षा का सही अर्थ है मनुष्य का सर्वांगीण विकास
पर हम में से कितने सही मायने में शिक्षित हैं ?