गीत तो हम सब गाते हैं। कुछ स्नानागार में,
कुछ सभागार में, कुछ कारागार में, कुछ आगार (बस डिपो) में और भी न जाने
कहाँ-कहाँ। गाना सबको आता है, यह
तो कुदरती है। पर जनाब किसी को बोलिए कि दो पंक्ति सुना दे और
वो नये नवेले दुल्हे की तरह शरमा जाता है (दूल्हा इसलिए बोला है क्योंकि
आजकल लैंगिकवादी का इलज़ाम CBI की क्लीन चिट्स की तरह
लोगों को बांटा जा रहा है)। पर कुछ लोग तो ऐसे ढीठ हैं कि सार्वजनिक जगहों पर भी गला फाड़ देते
हैं। दरअसल कानों में टुनटुना ठूसने के बाद किसी बात का ध्यान नहीं रहता।
दिल्ली मेट्रो में तो ऐसे लोग भरसक प्राप्त होते हैं। "कृपया मेट्रो
में संगीत ना बजाएं और सहयात्रियों को परेशान ना करें" घोषणा होने के
बावजूद लोग टुनटुने से उद्घोषक को ठेंगा दिखा देते हैं और अपनी आवाज़ से सहयात्रियों को। पूरे
सफर में किरकिरी तो तब होती है जब जनाब/जनाबिन के टुनटुने से महा-वाहियात, महा-बेसुरा, महा-बेसिरपैरा गाना लीक हो रहा होता है। उससे बचने का एक ही
उपाय है कि आप भी एक टुनटुना ठूस लें। जैसे लोहा, लोहे को काटता है
वैसे ही टुनटुना, टुनटुने
को!
खैर हम बात कर रहे थे गीत गाने की।
कुछ तो बचपन से देवदास बनने का बोझ उठा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वो दारु की बोतल लिए चुन्नी और चंद्रमुखी के साथ यात्रा पर निकलते हैं पर उनके गीत बड़े ही निराशाजनक और अपच पैदा करने वाले होते हैं। वो दिनभर ऐसे ही गीत सुनते हैं और सामूहिक संचार माध्यम (सोशल मीडिया) से लोगों को भी प्रताड़ित करते हैं। कभी-कभार ऐसे गीत सुन लो तो दुःख हल्का होता है पर हर रोज ऐसे गीत? देवदास ही बचाए!
कुछ तो बचपन से देवदास बनने का बोझ उठा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वो दारु की बोतल लिए चुन्नी और चंद्रमुखी के साथ यात्रा पर निकलते हैं पर उनके गीत बड़े ही निराशाजनक और अपच पैदा करने वाले होते हैं। वो दिनभर ऐसे ही गीत सुनते हैं और सामूहिक संचार माध्यम (सोशल मीडिया) से लोगों को भी प्रताड़ित करते हैं। कभी-कभार ऐसे गीत सुन लो तो दुःख हल्का होता है पर हर रोज ऐसे गीत? देवदास ही बचाए!
दूसरी ओर कुछ महानुभाव(विन) ऐसे होते हैं जो केवल ढिनचैक गाने
सुनते हैं। जहाँ
जाएँगे, घोर मस्ती गीत शुरू कर देते हैं। देखने में आया है कि ये 'यो यो' के फैन क्लब पेज भी चलाते हैं। इनको शब्द या
अर्थ से कोई लेना देना नहीं होता। पर ये आपको किसी टिप्पणी पर लैंगिकवादी
बताने में पीछे नहीं रहेंगे। तो सावधान रहें। इनके साथ नाचिये और अपनी राह तकिये।
तीसरी श्रोता श्रेणी उन लोगों की है जो केवल गहन अर्थ
वाले गाने ही सुनते हैं। ये प्रवाचक होते हैं और 'यो यो' के 'अ-फैन' क्लब पेज चलाते हैं। अगर
गीतकार ने लिखा
होता है कि "आसमान नीला है" तो ये इस पंक्ति की गहरी खुदाई करते हैं, फ़िर उसमें कूद
पड़ते हैं और आसमान फाड़कर सोना निकालकर पेश होते हैं। ऐसे लोग साहित्य के अच्छे अध्यापक बनते हैं और
बच्चों की कमर तोड़ते हैं।
चौथा श्रेणी है नेताओं का। ये केवल एक ही तरह के गीत सुनते और
गाते हैं। "भ्रष्ट गीत"! ऊपर मौजूद सभी तरह के श्रोताओं को ये सालों से
अकेले ही धोते आते रहे हैं। यही इनका राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत है। ये स्नानागार,
सभागार, कारागार, इत्यादि, लगभग हर जगह भ्रष्ट गीत ही गाते हैं।
हमारे ख़ुफ़िया पेटी वादक ने इनके एक भ्रष्ट गीत को खोद निकाला है और आपके समक्ष
पेश कर रहा है। आप भी सुनिए और बताइए कब बंद होंगे ऐसे भ्रष्ट गीत?
इसी गीत का एक वीडियो भी मैंने तैयार लिया है. देखिये और मस्त हो जाइए!
वैसे कैसा भी गीत हो, अगर कर्णप्रिय है तो सब ठीक है। सबकी अपनी-अपनी पसंद है। कोई ग़मगीन, कोई मस्तीलीन, तो कोई अर्थलीन है। जो जैसा है वैसा रहे। हम-आप बस मस्ती करते रहें सबके साथ।
पर हाँ, ये
भ्रष्टलीन श्रोताओं की आवाज़ अब बंद करनी होगी। नया साल आ रहा है। तो झाड़ू लगाइए,
पोंछा लगाइए, वैक्यूम क्लीनर इस्तेमाल करिये, पर सफाई पूरी हो अबकी।
नये साल की शुभकामनाओं के साथ राम-राम, आदाब, सायोनारा, जय भारत!
नये साल की शुभकामनाओं के साथ राम-राम, आदाब, सायोनारा, जय भारत!
उम्दा आलेख...!
जवाब देंहटाएंRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
गज़ब गीत...
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