सोचा करता था वह "अपने" लोगों के बारे में
वही जिनको वो कई रिश्तों से पहचानता था
माँ, पिता, भाई, बहन, चाचा, दोस्त, जिगरी दोस्त, चड्डी दोस्त..
"अपने"
यह शब्द भेदती थी उसे कभी..
क्या यह शब्द दुनिया का छलावा नहीं है?
इस शब्द ने कईयों की दुनिया नहीं उजाड़ी है?
पर
फ़िर
क्या इन्हीं "अपनों" ने उसकी ये ज़िंदगी हसीन नहीं बनाई है?
क्या वही ये "अपने" नहीं हैं
जो उसके सुख-दुःख में,
उसके गिरते क़दमों
और
कन्धों को सहारा देते रहे हैं?
पर आज उसे "भय" लग रहा है
आज उसके दिल से खून का कतरा सूखा जा रहा है
आँखों का पानी शरीर में ही कहीं सूख रहा है
क्यों..
आज न जाने क्या ख्याल आया
क्या ये "अपने" उसका साथ निभाएँगे?
तब
जब
पंचतत्व
उसके खून के हर कतरे को,
शरीर की हर बूँद को,
रूह के हर कण को,
अंगों की हर सांस को,
अपनी ओज में सुखाएगा
आखिरी आवाज़ लगाएगा?
उस दिन शायद उसे "अपने" छलावा लगेंगे
वो उसका साथ वहीँ छोड़ देंगे
क्या यह ज़िंदगी का छलावा नहीं है?
जो की फिल्म की चरमावस्था (क्लाईमैक्स) को
दुखांत (ऐन्टी-क्लाईमैक्स) कर देगा?
जिनके लिए पूरी ज़िंदगी जी है
बस वही नहीं मिलेंगे..
"अपनों" को "अपना" कहना
क्या उस दिन इस शब्द के खिलाफ नहीं हो जाएगा?
यह सोच कर वह आज घबरा रहा है
पर
फ़िर
जब तक सच्चाई का पता नहीं चलेगा
तब तक इस छलावे को जीना पड़ेगा
यह छलावा जिसे हम "अपने" कहते हैं
आज यही सच्चाई है..
आज यही ज़िंदगी है..
वही जिनको वो कई रिश्तों से पहचानता था
माँ, पिता, भाई, बहन, चाचा, दोस्त, जिगरी दोस्त, चड्डी दोस्त..
"अपने"
यह शब्द भेदती थी उसे कभी..
क्या यह शब्द दुनिया का छलावा नहीं है?
इस शब्द ने कईयों की दुनिया नहीं उजाड़ी है?
पर
फ़िर
क्या इन्हीं "अपनों" ने उसकी ये ज़िंदगी हसीन नहीं बनाई है?
क्या वही ये "अपने" नहीं हैं
जो उसके सुख-दुःख में,
उसके गिरते क़दमों
और
कन्धों को सहारा देते रहे हैं?
पर आज उसे "भय" लग रहा है
आज उसके दिल से खून का कतरा सूखा जा रहा है
आँखों का पानी शरीर में ही कहीं सूख रहा है
क्यों..
आज न जाने क्या ख्याल आया
क्या ये "अपने" उसका साथ निभाएँगे?
तब
जब
पंचतत्व
उसके खून के हर कतरे को,
शरीर की हर बूँद को,
रूह के हर कण को,
अंगों की हर सांस को,
अपनी ओज में सुखाएगा
आखिरी आवाज़ लगाएगा?
उस दिन शायद उसे "अपने" छलावा लगेंगे
वो उसका साथ वहीँ छोड़ देंगे
क्या यह ज़िंदगी का छलावा नहीं है?
जो की फिल्म की चरमावस्था (क्लाईमैक्स) को
दुखांत (ऐन्टी-क्लाईमैक्स) कर देगा?
जिनके लिए पूरी ज़िंदगी जी है
बस वही नहीं मिलेंगे..
"अपनों" को "अपना" कहना
क्या उस दिन इस शब्द के खिलाफ नहीं हो जाएगा?
यह सोच कर वह आज घबरा रहा है
पर
फ़िर
जब तक सच्चाई का पता नहीं चलेगा
तब तक इस छलावे को जीना पड़ेगा
यह छलावा जिसे हम "अपने" कहते हैं
आज यही सच्चाई है..
आज यही ज़िंदगी है..
मिला मुझे मेला, सैकड़ों व्यक्तित्वों का..
जवाब देंहटाएंआप कुछ भी कहे,अपने तो अपने होते है,,,,
जवाब देंहटाएंresent post : तड़प,,,
प्रिय ब्लॉगर मित्र,
जवाब देंहटाएंहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
जीवन के सच से परिचित कराने वाली सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदरता से पूरे जीवन दर्शन का वर्णन कर दिया है आप ने ,,ख़ुश रहिये और ऐसे ही लिखते रहिये
जवाब देंहटाएं