"बाबा, जायदाद के लिए फिर से हाथापाई हो गयी और गौतम ने जीतू भैया को गोली मार दी!!"
इतना सुनना था कि बाबा और माँ पवन की वेग से गाड़ी में चढ़ कर जीतू के घर पहुंचे..
वहां अफरा-तफरी मची हुई थी और इसी बीच जीतू को अस्पताल ले जाया गया...
करीब ३-४ घंटों की मशक्क़त के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया..
पुलिस केस हुआ और गौतम को अपने बड़े भाई के क़त्ल के जुर्म में जुर्माने के साथ १० साल की कैद हुई...
घटना के कई दिनों बाद बाबा माँ के साथ बरामदे में बैठे थे.. दोनों में एक समझी-बुझी चुप्पी थी..
तभी बाबा बोले - "जीतू की माँ, अगर इन दो नालायकों के लिए हमने उस समय परिवार और समाज के दबाव में तेरे कोख में पल रही दो कन्याओं का क़त्ल किया था, तो सबसे बड़े गुनहगार तो हम हैं... काश हमारे बेटियाँ होती.."
और दोनों की आँखों से दो बूँद आंसू, धूप से तपती गर्म फर्श पे गिर के उन अजन्मी कन्याओं की तरह मर गए...
फोटो श्रेय: http://www.stolenchildhood.net
बहुत सुंदर सन्देश देती कथा...... कम शब्दों में कही आज दौर की हकीकत.....
जवाब देंहटाएंnihshabd ek maun sisakta hua
जवाब देंहटाएंएक गंभीर सामाजिक समस्या को आपने अपनी लघु कथा के माध्यम से बहुत ही सुन्दर रूप में प्रकट किया है.... लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंvery nice post....
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी लघु कथा
जवाब देंहटाएंइतनी छोटी कहानी और इतनी गहरी बात!
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंNow a days, there are strict rules against female foeticide.
.
निशब्द मगर कड़वा सच! आपकी यह लघु कथा मन को कहीं गहरे तक कचोट गयी.
जवाब देंहटाएंआपकी लघु कथा ने झकझोर दिया .....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसच्चाई को बेनकाब करती हुई पोस्ट !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बेशक : काबिल-ए-दाद
जवाब देंहटाएंपुरकशिश सार्थक लघु कथा