यह लेख मैंने काफी पहले लिखा था पर पोस्ट नहीं किया था ।
पहले ही बता दूं कि गीत की गहराई को समझते हुए इसके विश्लेषण को आराम से पढ़ें ।
पोस्ट की लम्बाई पर मत जाओ, अपना समय लगाओ :)
Daddy मुझसे बोला, तू गलती है मेरी
तुझपे जिंदगानी guilty है मेरी
साबुन की शक़ल में, बेटा तू तो निकला केवल झाग
झाग झाग
भाग-भाग डी.के.बोस...
डी.के.बोस, हिन्दी फिल्म इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला और गाया जाने वाला गीत है..
गायक ने बेहतरीन तरीके से अपने मन की और भारत के करोड़ों नौजवानों के मन की भड़ास को बेहद ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया है जिसका सेंसर बोर्ड भी लोहा मान चुकी है..
इस गीत से साफ़ पता चलता है कि गायक को डी.के.बोस, डी.के.बोस बार-बार बोलने की बिमारी है और इस बिमारी के कारण उन्हें यहाँ वहां भागते रहना पड़ता है...
पंक्तियों की शुरुआत में गायक अपने पूजनीय पिताश्री का सम्मान करते हुए, अपने और अपने पिताश्री के बीच हुए सौहार्द भरे वार्तालाप को बयां कर रहा है...
उसके पिता, उसे बिलकुल पाजी मानते हैं और कहते हैं कि जिंदगी में उन्होंने दो गलती की है.. १) शादी करके और २) उसे पैदा कर के..
शादी करके गलती करने वाली बात को गायक ने बेहतरीन तरीके से शब्दों के बीच छुपाया है और उसे कोई विरले ही समझ और रसास्वादन कर सकते हैं.. अर्थात उसके रस को पहचान सकते हैं..
तत्पश्चात, पिताश्री, जिसे गायक डैडी कहकर संबोधित कर रहा है (जिससे उसके उच्च कुल में पैदा होना का प्रमाण मिलता है), उसकी उपमा रोजमर्रा में आने वाली चीज़ों से कर रहे हैं..
वो कहते हैं कि तू उसी लोकल साबुन की तरह है जो सस्ता होता है और देश में बढ़ रही महंगाई के कारण खरीदना पड़ रहा है और उसके इस्तेमाल के बाद उनके मन में ग्लानि हो रही है क्योंकि इस लोकल साबुन से केवल झाग ही निकलता है पर शरीर के गन्दगी को साफ़ करने में यह असक्षम है... ठीक उसी तरह जिस तरह उनका पाजी बेटा कोई भी काम करने में असक्षम है...
इसके बाद डैडी उसे भागने को कहते हैं और उन्होंने अपने बेटे का उपयुक्त नाम "डी.के.बोस" रख कर अपना काम आसान कर दिया है क्योंकि जब वो इसका बार-बार जाप करते हैं तो जो वो असल में कहना चाहते हैं, वो बाहर आ जाता है... पर चूँकि भारतीय संस्कृति में अपशब्दों का अपने बच्चों के सामने प्रयोग करने का कोई प्रयोजन नहीं है, इसलिए ऐसे नामों के सहारे, आने वाली पीढ़ी के बाप शिक्षा ले सकते हैं और अपने दिल की भड़ास बेहद ही शातिरी से, छुपाते हुए भी निकाल सकते हैं..
ओ by God लग गयी, क्या से क्या हुआ
देखा तो कटोरा, झाँका तो कुआं
पिद्दी जैसा चूहा, दुम पकड़ा तो निकला काला नाग
भाग-भाग डी.के.बोस...
उपर्युक्त पंक्तियों में गायक अपने भगवान को याद कर रहा है और इससे समझा जा सकता है कि वह धार्मिक प्रवृत्ति वाला इंसान है और फिलहाल दुःख में है.. क्योंकि हम केवल दुःख में ही ऊपर वाले का आह्वान करते हैं..
गायक को समझ नहीं आ रहा है कि उसके साथ ये कैसे हो रहा है? ठीक उसी तरह जिस तरह दिग्विजय सिंह को पता नहीं चलता कि वो जो बोल रहे हैं वो क्यों, कैसा, कब, क्या बोल रहे हैं.. और ठीक उसी तरह जिस तरह एक इंजीनियरिंग का छात्र अपने फाईनल एक्जाम में खिड़कियों के बाहर झांकता हुआ सोचता है कि शायद आसमान में कहीं उसे सवालों के जवाब मिल जाएँगे..
भगवान से गुहार करता हुआ गायक कहता है कि उसकी वाट लग गयी है जिसे सीधे, सरल और सलीके वाले शब्दों में कहें तो "दुर्गत हो गयेली है" (मून्ना भाई आपको थैंक्स यार!!)
वो भगवान के सामने कुछ तथ्य पेश करता है जिससे उसके ऐसी दुर्गति होने की पुष्टि होती है..
वह कहता है कि उसके हाथ में कटोरा है (जिसका कारण हम वीडियो में गायक की हालत देख कर लगा सकते हैं कि वह ट्रेनों में घूम-घूम कर कटोरे में पैसे बटोरता है और डी.के.बोस, डी.के.बोस का जाप करते वक्त मार खाता है इसी कारण उसकी एक आँख भी काली हो गयी है..) जब वो अपने कटोरे में झांकता है तो बटोरे हुए पैसों की जगह उसे कुआं नज़र आता है और उसके सारे पैसे गायब हो जाते हैं.. और वह फिर से डी.के.बोस का जाप शुरू कर देता है..
वह यह भी कहता है कि बिल में घुसने वाले चूहे को, जैसे ही वह दुम से पकड़ने की कोशिश करता है तो वह काला नाग निकलता है.. परन्तु इस बात कि पुष्टि नहीं हो पायी है कि बिल में घुसने वाले चूहे या सांप से उसके क्या ताल्लुकात हैं जो वह उसे दुम पकड़ के छेड़ने की कोशिश करता है..
किसने किसको लूटा, किसका माथा कैसे फूटा
क्या पता, we dont have a Clue
इतना ही पता है, आगे दौड़ें तो भला है
पीछे तो, एक राक्षस फाड़े मुंह
एक आंधी आई है, संदेसा लायी है
भाग-भाग डी.के.बोस...
गायक अभी भी भाग रहा है और अपने डी.के.बोस के जाप को जारी रखे हुए है.. उसके दो छुछुन्दर जैसे साथी इस भाग और राग में उसका पूरा साथ दे रहे हैं..
इन पंक्तियों में गायक अपने हिंसक प्रवृत्ति को जागृत कर रहा है और मरने-मारने की बात बता रहा है..
उसे पूरी दुनिया में किसी से कोई सारोकार नहीं है.. चाहे सरकार जनता को घोटाले कर के लुटे या फिर रामलीला में रावणलीला हो, उसे इन सब से कोई मतलब नहीं है और इससे वह अपने खुदगर्ज़ होने की बात को भी जग-जाहिर कर रहा है...
उसे केवल एक ही बात पता है और वो है यह कि उसके पीछे एक राक्षस पड़ा है और यह बात उसे भागते-भागते पता चली जब एक आंधी ने यह संदेसा दिया है.. शायद इसे ही विज्ञान का कमाल कहेंगे कि दूरसंचार अब बेतार हो चुका है और अब तो आंधियां भी संदेसा ले कर घूमती हैं.. इन पंक्तियों से विदेशी वैज्ञानिकों में खलबली ज़रूर मचेगी पर क्या करें हम भारतीय सबसे तेज हैं.. आजतक से भी!
खैर भागते-भागते जाप अभी भी शुरू है.. मेरे ख्याल से अगर इतना तेज, इस १०० करोड़ की आबादी में १० इंसान भी भाग लें तो १० पदक तो पक्के हो जाएँगे ऑलिम्पिक्स में.. इस गाने से सभी धावकों में एक नए रक्त का संचार हुआ है..
हम तो हैं कबूतर, दो पहिये का एक स्कूटर ज़िन्दगी
जो धकेलो तो चले
अरे किस्मत की है कड़की, रोटी, कपड़ा और लड़की, तीनों ही
पापड़ बेलो तो मिले
ये भेजा garden है और tension माली है
मन का तानपुरा, frustration में छेड़े एक ही राग
भाग-भाग डी.के.बोस...
गायक के पिता ने उसकी उपमा करनी अभी भी नहीं छोड़ी है.. वह उसे कभी कबूतर, तो कभी स्कूटर से तोल रहे हैं.. गायक कहता है कि यह दो पहिये का स्कूटर तो धकेलने से ही चलता है जिसमें एक गहन विषय को बड़ी बारीकी से छेड़ा गया है.. इसमें सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई गयी है जो हर २ हफ्ते में पेट्रोल और तेल के दाम बढ़ा रही है और डी.के.बोस जैसे आम इंसानों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है..
पर ख़ुफ़िया गीतकार के हवाले से यह भी पता चला है कि स्कूटर सिर्फ धकेलने से ही चलती है क्योंकि इन तीनों का भार केवल ट्रैक्टर ही उठा सकता है.. बजाज और वेस्पा तो २.५ लोगों के लिए ही बना था.. पर इन्होंने अपनी भारतीयता का इस्तेमाल करने की कोशिश की और इसलिए ऐसी मुसीबत में फंस गए हैं...
अगली पंक्ति में देश भर के नौजवानों की बात खुले दिल से गायक ने की है.. इससे पहले सभी भारतीय और नेताओं के लिए ३ सबसे अहम चीज़ें रोटी, कपड़ा और मकान हुआ करती थीं.. पर गायक ने पुरानी प्रथाओं को तोड़ते हुए नयी मिसाल कायम की है और कहा है कि किस्मत उसकी आज भी आज से ५० साल पहले जैसी खराब है जब रोटी, कपड़ा और मकान नहीं मिलता था.. आज उसे रोटी, कपड़ा और लड़की की कड़की जान पड़ती है..
इसमें भी एक गहन विषय को बहुत ही ख़ुफ़िया तरीके से छेड़ा गया है.. महंगाई के कारण रोटी और कपड़े की कड़की हो रही है और लड़कियों के प्रति अत्याचार और उनके क़त्ल होने के कारण लड़कियों की कमी महसूस की जा रही है.. पर ऐसी गहराई की बातों को भी सिर्फ कुछ विरले ही समझ पाते हैं..
फिर गायक कहता है कि पापड़ बेलने से उसे इन तीनों चीज़ों के मिलने से कोई नहीं रोक सकता.. रोटी और कपड़े का तो ठीक है पर पापड़ और लड़की मिलने का क्या सम्बन्ध है इस बारे में ख़ुफ़िया गीतकार के पास भी कोई जानकारी नहीं है.. शायद गायक जिस लड़की को चाहता है, उसे पापड़ बहुत पसंद हैं..
आगे गायक ने अपने शरीर पे ही खेती शुरू कर दी है (शायद उसकी ज़मीन सरकार ने छीन ली है).. वह अपने बालों को गार्डन और रोटी, कपड़ा और लड़की न मिलने से उत्पन्न हुए दिमाग में गंभीर कम्पन्न जिससे अंदर की कोमल नाड़ियाँ में तनाव पैदा हो गया है, उसे वह अपने बालों से भरे सर को जोतने की बात कर रहा है.. इसका सीधा असर उसके मन पर होता है जो उस कम्पन्न से पैदा हुए तरंगों से एक तानपूरे की तरह कार्य कर रहा है और वह एक ही राग छेड़ रहा है जिसके बोल हैं डी.के.बोस, डी.के.बोस, डी.के.बोस...
तत्पश्चात गायक और उसके दो साथी साभी साजों-गाजों को छोड़ कर भाग जाते हैं...
इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका यह गीत सरकार के मुंह पर तमाचा है और साथ ही साथ सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है जो ऑलिम्पिक में भाग ले कर देश का नाम ऊँचा करना चाहते हैं या फिर पापड़ बेल कर रोटी, कपड़ा और मकान... ओह माफ करियेगा लड़की की कड़की को मिटाना चाहते हैं..
*अभी-अभी: "मकान" की जगह "लड़की" इस्तेमाल करने का राज़ भी उजागर हो चुका है.. सरकार ने गृह-ऋण बढ़ा दिए हैं जिस कारण गायक ने मकान की आशा छोड़ दी है और उसे लगता है कि लड़की से शादी करते वक्त वह दहेज में मकान मांग लेगा.. एक तीर से दो निशाने! वाह! :)
बड़ी गहरी बात कही है..
जवाब देंहटाएंहा हा हा ,,, ऐसे गूढ रहस्यों पर से कोई ज्ञानी ही पर्दा उठा सकता था... बोस डी॰ के॰ खुश रहें मस्त रहें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विवेचना...गहन चिंतन...डी के बोस...भागता ही फिर रहा है...मैंने ये गाना ठीक से नहीं सुना था...सुना भी तो समझ में नहीं आया...शायद मूवी देखने से कुछ समझ आता...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक विवेचना ,बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंwelcome to new post ...काव्यान्जलि....
Bahut khuub
जवाब देंहटाएंगजब की व्याख्या की है दोस्त!
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया पढ़ कर!
वाह ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
जवाब देंहटाएंहा हा हा ....
जवाब देंहटाएंविषद व्याख्या ...आधुनिक हिंदी गीतों के इतिहास की शुरुआत आप कर चुके !
शानदार !
धन्यवाद! :)
जवाब देंहटाएंअपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंऐसा विश्लेषण स्वयं उस गीतकार ने भी नहीं किया होगा जिसने गलती से इस गीत को लिखा...आपने तो सोच की दशा ही बदल दी...कैबरे को भारत नाट्यम में परिवर्तित कर दिया...आप धन्य हैं
जवाब देंहटाएंनीरज
मस्त!!
जवाब देंहटाएंrochak prastuti.......
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा और मनोरंजक पोस्ट...:)|
जवाब देंहटाएंBahut gehri baat boldi yara .. me to doobte doobte bacha hu.. baki to maza agar poora read karke..
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