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शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

बचपन से बुढ़ापा - Psenti Special

**** यह कविता काफ़ी लम्बी है [:)] | यह जानकारी उन लोगों के लिए है जो यह सोचकर ब्लॉग पढ़ रहे हैं कि शायद एक छोटी सी कविता आपके समक्ष होगी |पर आपको काफ़ी संयम के साथ इसका पठन करना पड़ेगा | यह अलग से नोट मैंने कुछ लोगों की टिपण्णी के बाद डालने का विचार किया | आशा है आप में वो संयम अवश्य होगा जो मुझे भी रखना पड़ा था यह कविता बुनते वक्त - "3 घंटे " | अपनी ज़रा सी मेहनत पर आपकी छोटी टिप्पणियाँ काफ़ी उत्साहवर्द्धक होंगी | - धन्यवाद

अब वक्त आ गया है जब कुछ लोग बिछड़ जाएँगे हमसे ,
पर बिछड़ने का दुःख, मिलने के सुख से कहाँ है बड़ा..
हम बस यही कहते हैं आपसे ,
ज़िन्दगी का उसूल है ये - "जो ना बिछड़ा वो कहाँ मिला"

साल - 1
यह साल है उस नन्हें बचपन की,
जब ज़िन्दगी की शुरुआत हुई..
दिल हिलोरे मारने पर मजबूर था,
और यह देखो !!!
कॉलेज की शुरुआत हुई..
अरे भाईयों (और उनकी बहनों)
ये विंग का खेला क्या होता है,
साईडी और रूमी किसका तोता है ?
सुबह-सुबह इनका दिन होता है,
रात 10 बजे तक हर विंग सोता है..
क्लास जाना चाहिए बराबर,
नहीं तो कम आएँगे नम्बर..
सुना है RAF में फिल्में दिखाते हैं,
150 रूपए में 24 आते हैं ? ? ?
बॉस्म किस खेल का नाम है ?
अरे नहीं यह तो खेलों का सुल्तान है..
ओएसिस में घर चलते हैं,
नहीं रे, रुक ना..मस्ती करते हैं..
दिवाली यहाँ सूनी-सूनी सी,
घर की याद दिला गई..
फ़िर खाना इतना माशा-अल्लाह,
अच्छे-अच्छों की तंगी आ गई..
Tuts,Tests और Lab तो हैं बस li8 रा,
Compree में पूरी निकल गई है इनकी हवा..
जैसे तैसे इसे निकाला, चले हैं घर को झूम के..
ये देखो इस बचपन का रंग,
कॉलेज के दिन हैं नूर से..
दूसरा सेम मतलब ठंडा-ठंडा कूल कूल,
ये सुहावना मौसम है "So Wonderful"
अब थोडी बिट्सियनगिरी आई है इनमें,
जागते हैं रातों में और सोते हैं दिन में..
Founder's Day, Inbloom और APOGEE हैं नए अखाड़ी,
लो साहब वो आते हैं जोशीले नए खिलाडी..
अब तापमान यहाँ का और प्रॉफ्स का भी बढ़ रहा है,
जो की बदन पे कपडों से और पपेरों में नंबरों से साफ़ झलक रहा है..
किसी तरह भाग छूटें इस कारागार से,
सबकी यही दुआ है परवर-दिगार से..
और यूँ ही ख़त्म हो गया पहला साल,
Wings टूटी हैं अब जाना है सबको अपने-अपने द्वार..
वो जोश, वो तरंग, वो उमंग अब ठंडा पड़ चुका है,
और कॉलेज का बचपन समाप्त हो चुका है ||

साल - 2
ढाई महीने की लम्बी छुट्टी के बाद,
घर से कॉलेज का बजाया है शंख-नाद..
फ़िर से नए भवनों का मज़ा लेने आए हैं [लड़कियां मैं क्षमा चाहता हूँ इस मामले में]
कंप्यूटर/लैपटॉप भी साथ लाए हैं..
अरे ये देखो इस बार क्या हुआ !!!!
कॉलेज का यौवन हम पर सवार हुआ..
जो हुआ करते थे अपने बचपन में सबसे शरीफ,
आज हर प्रॉफ को उसी की तलाश है,
जो लिखा करते थे पेपर में कलम तोड़-तोड़ कर,
आज उन्हीं के पेपर सबसे साफ़ हैं..
अब तो C'not और नूतन पे डेरे जमते हैं,
मय के प्यालों के फेरे पड़ते हैं..
RAF में लोगों का कंगाला पड़ा है,
भला क्यों ना हो ? सबके कमरे में एक डब्बा जो गड़ा है..
अब लेक्चर जाने का बस एक ही मकसद रह गया है,
किसी पे दिल, crush जो कर गया है..
क्लब/डिपार्टमेन्ट तो जैसे बल्ले-बल्ले ,
पढ़ाई-लिखाई li8 ले li8 ले ..
Test और Tut के लिए रात [बिट्सियन "दिन" पढ़ें] को शुरू होती है पढ़ाई,
सुबह सबने मिलकर हाय-तौबा मचाई..
सभी खेलों और इवेंट्स में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है,
मानो पूरा जंग जीत लिया है..
बस यूँ ही सो-सो कर ज़िन्दगी को sac-out कर लिया है,
और किसी तरह 2nd इयर पार किया है..
तो खत्म हुआ gen tp वाला अनूठा साल,
ये यौवन ना आएगा फ़िर से एक बार ||

साल - 3
कमर कसकर तैयार हो जाइये,
जहाँ पनाह घोटू महाराज, घोटुओं के सरताज पधार रहे हैं..
पता है यह सबसे ख़ास साल है इनके लिए,
क्योंकि इसी से इनकी भावी ज़िन्दगी का सफर जुड़ा है
अब क्लास जाने का मतलब है पढ़ाई,
टाइम ख़राब करने वालों को बाई-बाई..
CDC में खूब नम्बर जमाए हैं,
पर कुछ तो अब भी av - ही ला पाए हैं..
Lab,Test और compree में है जीवन निकाला,
जिस तरह शादी करने के बाद निकलता है लोगों का दिवाला..
अब तो रात दिन एक से लगते हैं,
केवल पढ़ना है सब यही कहते हैं..
सभी ने जी भर के दी है प्रॉफ्स को बद्दुआ..
तो इस तरह गृहस्थ आश्रम खत्म हुआ..

साल - 4
अब आया है वो सेम जिसे लोग psenti कहते हैं,
क्या वाकई में लोग इसमें इतने senti होते हैं ?
ज़िन्दगी में जैसे एक भूचाल सा आया है,
क्यों नहीं ? पिछले 3 साल का फल यहीं तो पाया है..
नियम बनाया है की हर दिन आना है मन्दिर में फेरे देकर,
और प्लेसमेंट में बैठना है हर प्रॉफ का नाम ले कर..
जब जॉब लगने का "गुड न्यूज़" सुनाया है,
तो bumps, treat और बधाई का पात्र कहलाया है..
अब तो बुढापे में जवानी का जोश आया है,
ये फ़िर से बिट्सियन पद्दति पर आया है..
रात भर जग कर फिल्में देखना,
और दिन में दोस्तों के साथ खूब मटर-गश्ती करना..
बस अब ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं इस ज़िन्दगी के,
बुढापा अपना रंग दिखाने लगा है हर किसी पे..
घंटों फ़ोन पर बातें करते हैं,
और शायद किसी से दिल की बात भी कहते हैं..
Farewell के दिन जब नज़दीक आते हैं,
तो इनके status message बड़े दुखद हो जाते हैं..
लोग buzz कर के हाल-चाल पूछते हैं,
और ये ग़मों भरा reply भी देते हैं..
खैर हम क्या जाने इनके दिल का हाल,
अभी तो बाकी है हमारा एक साल..

बस यादों के ज़रिये जीना सीख रहे हैं ये सब,
उन हसीं पलों को साथ रखोगे कब तक ?
पुरानी फोटो और विडियो देख कर दिल भर आता है,
और जब और सह ना सके तो आंसू मोती बन जाता है..
क्या पता कहीं अकेले में भी बैठ कर सिसकते होंगे,
इन सब चीज़ों को पकड़ने की नाकाम कोशिश करते होंगे..

आप सभी को इस नाचीज़ का सलाम,
बस इससे ज़्यादा क्या कहें आपके नाम..
अगर इसे पढ़कर आपका दिल भर आया है,
अगर इसे पढ़कर यादों का पुल बाँध को तोड़ आया है,
अगर इसे पढ़कर किसी का ख्याल दिल में आया है,
तो सही मायनों में आप senti हैं,
आपने वाकई में बिट्सियन ज़िन्दगी को जिया है,
नहीं तो आपने काफ़ी कुछ Miss किया है..
क्या पता कल मैं भी इसी तरह किसी का ब्लॉग पढ़ रहा होऊंगा,
और मन-ही-मन उस जूनियर को धन्यवाद दे रहा होऊंगा..
जिसने अपने सीनियर्स के नाम यह कविता बनाई है,
आशा करता हूँ यह आपको पसंद आई है..

अगर सही में अच्छी लगी हो यह कृति,
तो जाते-जाते बस दे जाइये एक टिपण्णी ||

4 टिप्‍पणियां:

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